ये उस दौर की कहानी है जब मुग़लिया तख़्त पर शाह आलम द्वितीय का शासन हुआ करता था.
सड़क से लेकर दरबार तक मुग़लिया शान की धज्जियां उड़ रही थीं. एक कहावत हुआ करती थी- शाह आलम की सल्तनत, दिल्ली से पालम तक...
इसी दौर में सात समंदर पार से व्यापार करने आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे हिंदुस्तान पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.
लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी ने सिर्फ़ व्यापार और ज़मीन पर नियंत्रण नहीं किया. बल्कि इसमें काम करने वाले उच्च अधिकारियों ने मुग़लिया कला और कलाकारों को भी ब्रिटिश राज में समाहित करना शुरू कर दिया.
पटना के मुग़लिया पेंटर ज़ैनुद्दीन
ब्रिटिश राज के ज़माने में पटना के रहने वाले शेख़ ज़ैनुद्दीन की पहचान चुनिंदा पेंटरों में हुआ करती थी. वो मुग़लिया पेंटिंग शैली के चित्रकार थे. और उन्हें नवाबों का आश्रय प्राप्त था.